श्री हनुमान साठिका (Shri Hanuman Saathika)

श्री हनुमान साठिका

॥दोहा॥

बीर बखानौं पवनसुत,जनत सकल जहान ।

धन्य-धन्य अंजनि-तनय , संकर, हर, हनुमान्॥

।।चौपाइयां।।

जय-जय-जय हनुमान अडंगी | महावीर विक्रम बजरंगी ||

जय कपिश जय पवन कुमारा | जय जग बंदन सील अगारा ||

जय आदित्य अमर अबिकारी | अरि मरदन जय-जय गिरिधारी ||

अंजनी उदर जन्म तुम लीन्हा | जय जयकार देवतन कीन्हा ||

बाजे दुन्दुभि गगन गंभीरा | सुर मन हर्ष असुर मं पीरा ||

कपि के डर गढ़ लंक सकानी | छूटे बंध देवतन जानी ||

ऋषि समूह निकट चलि आये | पवन-तनय के पद सिर नाये ||

बार-बार स्तुति करी नाना | निर्मल नाम धरा हनुमाना ||

सकल ऋषिन मिली अस मत ठाना | दीन्ह बताय लाल फल खाना ||

सुनत वचन कपि मन हर्षाना | रवि रथ उदय लाल फल जाना ||

रथ समेत कपि कीन्ह आहारा | सूर्य बिना भये अति अंधियारा ||

विनय तुम्हार करै अकुलाना | तब कपिस की अस्तुति ठाना ||

सकल लोक वृतांत सुनावा | चतुरानन तब रवि उगिलावा ||

कहा बहोरी सुनहु बलसीला | रामचंद्र करिहैं बहु लीला ||

तब तुम उनकर करेहू सहाई | अबहीं बसहु कानन में जाई ||

अस कही विधि निज लोक सिधारा | मिले सखा संग पवन कुमारा ||

खेलै खेल महा तरु तोरें | ढेर करें बहु पर्वत फोरें ||

जेहि गिरि चरण देहि कपि धाई | गिरि समेत पातालहि जाई ||

कपि सुग्रीव बालि की त्रासा | निरखति रहे राम मागु आसा ||

मिले राम तहं पवन कुमारा | अति आनंद सप्रेम दुलारा ||

मनि मुंदरी रघुपति सों पाई | सीता खोज चले सिरु नाई ||

सतयोजन जलनिधि विस्तारा | अगम-अपार देवतन हारा ||

जिमि सर गोखुर सरिस कपीसा | लांघि गये कपि कही जगदीशा ||

सीता-चरण सीस तिन्ह नाये | अजर-अमर के आसिस पाये ||

रहे दनुज उपवन रखवारी | एक से एक महाभट भारी ||

तिन्हैं मारि पुनि कहेउ कपीसा | दहेउ लंक कोप्यो भुज बीसा ||

सिया बोध दै पुनि फिर आये | रामचंद्र के पद सिर नाये ||

मेरु उपारि आप छीन माहीं | बाँधे सेतु निमिष इक मांहीं ||

लक्ष्मण-शक्ति लागी उर जबहीं | राम बुलाय कहा पुनि तबहीं ||

भवन समेत सुषेन लै आये | तुरत सजीवन को पुनि धाय ||

मग महं कालनेमि कहं मारा | अमित सुभट निसि-चर संहारा ||

आनि संजीवन गिरि समेता | धरि दिन्हौ जहं कृपा निकेता ||

फन पति केर सोक हरि लीन्हा | वर्षि सुमन सुर जय जय कीन्हा ||

अहिरावन हरि अनुज समेता | लै गयो तहां पाताल निकेता ||

जहाँ रहे देवि अस्थाना | दीन चहै बलि कढी कृपाना ||

पवन तनय प्रभु किन गुहारी | कटक समेत निसाचर मारी ||

रीछ किसपति सबै बहोरी | राम-लखन किने यक ठोरी ||

सब देवतन की बन्दी छुडाये | सो किरति मुनि नारद गाये ||

अछय कुमार दनुज बलवाना | काल केतु कहं सब जग जाना ||

कुम्भकरण रावण का भाई | ताहि निपात कीन्ह कपिराई ||

मेघनाद पर शक्ति मारा | पवन तनय तब सो बरियारा ||

रहा तनय नारान्तक जाना | पल में हते ताहि हनुमाना ||

जहं लगि भान दनुज कर पावा | पवन-तनय सब मारि नसावा ||

जय मारुतसुत जय अनुकूला | नाम कृसानु सोक तुला ||

जहं जीवन के संकट होई | रवि तम सम सो संकट खोई ||

बंदी परै सुमिरै हनुमाना | संकट कटे घरै जो ध्याना ||

जाको बंध बामपद दीन्हा | मारुतसुत व्याकुल बहु कीन्हा ||

सो भुजबल का कीन कृपाला | अच्छत तुम्हे मोर यह हाला ||

आरत हरन नाम हनुमाना | सादर सुरपति कीन बखाना ||

संकट रहै न एक रति को | ध्यान धरै हनुमान जती को ||

धावहु देखि दीनता मोरी | कहौं पवनसुत जगकर जोरी ||

कपिपति बेगि अनुग्रह करहु | आतुर आई दुसै दुःख हरहु ||

राम सपथ मै तुमहि सुनाया | जवन गुहार लाग सिय जाया ||

यश तुम्हार सकल जग जाना | भव बंधन भंजन हनुमाना ||

यह बंधन कर केतिक वाता || नाम तुम्हार जगत सुखदाता ||

करौ कृपा जय-जय जग स्वामी | बार अनेक नमामि-नमामी ||

भौमवार कर होम विधना | धुप दीप नैवेद्द सूजाना ||

मंगल दायक को लौ लावे | सुन नर मुनि वांछित फल पावें ||

जयति- जयति जय-जय जग स्वामी | समरथ पुरुष सुअंतरआमी ||

अंजनि तनय नाम हनुमाना | सो तुलसी के प्राण समाना ||

।।दोहा।।

जय कपीस सुग्रीव तुम, जय अंगद हनुमान।।
राम लषन सीता सहित, सदा करो कल्याण। ।

बन्दौं हनुमत नाम यह, भौमवार परमान।।
ध्यान धरै नर निश्चय, पावै पद कल्याण।।
जो नित पढ़ै यह साठिका, तुलसी कहैं बिचारि।
रहै न संकट ताहि को, साक्षी हैं त्रिपुरारि।।

।।सवैया।।

आरत बन पुकारत हौं कपिनाथ सुनो विनती मम भारी।

अंगद औ नल-नील महाबलि देव सदा बल की बलिहारी ।।
जाम्बवन्त् सुग्रीव पवन-सुत दिबिद मयंद महा भटभारी ।

दुःख दोष हरो तुलसी जन-को श्री द्वादश बीरन की बलिहारी ।।

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