यत्र यत्र रघुनाथ कीर्तनं – हनुमान जी की अनन्य भक्ति का प्रतीक

यत्र यत्र रघुनाथ कीर्तनं – हनुमान जी की अनन्य भक्ति का प्रतीक

हनुमान जी की भक्ति का वर्णन जितना किया जाए, उतना कम है। वे परम रामभक्त, ज्ञान और शक्ति के प्रतीक, और भक्तों के संकटमोचक हैं। ‘यत्र यत्र रघुनाथ कीर्तनं’ श्लोक उनकी अनन्य भक्ति और समर्पण को दर्शाता है। यह श्लोक श्रीरामचरितमानस, रामायण, और अन्य ग्रंथों में विशेष रूप से उल्लेखित है और इसे पढ़ने से हनुमान जी की कृपा प्राप्त होती है।

श्लोक:

यत्र यत्र रघुनाथकीर्तनं
तत्र तत्र कृतमस्तकांजलिम् |
वाष्पवारिपरिपूर्णालोचनं
मारुतिं नमत राक्षसान्तकम् ||

इस श्लोक का हिंदी अर्थ

जहाँ-जहाँ भगवान श्रीराम का कीर्तन होता है, वहाँ-वहाँ हनुमान जी श्रद्धा से सिर झुकाए हाथ जोड़े खड़े रहते हैं। उनकी आँखें प्रेमाश्रुओं से भरी रहती हैं, और वे वहाँ राक्षसों का नाश करने वाले रूप में विद्यमान होते हैं

श्लोक का आध्यात्मिक और दार्शनिक महत्व

1. श्रीराम के प्रति हनुमान जी की अपार भक्ति

हनुमान जी की भक्ति का सर्वोच्च स्तर इस श्लोक में दर्शाया गया है। वे हर स्थान पर उपस्थित होते हैं जहाँ श्रीराम का कीर्तन हो रहा हो, जो यह सिद्ध करता है कि भक्ति से कोई भी दूरी नहीं होती, और सच्चे भक्त के लिए हर स्थान तीर्थस्थल बन सकता है

2. हनुमान जी का दास्य भाव

इस श्लोक में हनुमान जी के दास्य भाव (शरणागत भाव) को स्पष्ट रूप से दर्शाया गया है। वे हमेशा अपने आराध्य श्रीराम के चरणों में रहते हैं, और उनकी आँखें हमेशा प्रेम और भक्ति से भरी रहती हैं। यह हमें निष्काम सेवा का महत्त्व सिखाता है।

3. अधर्म पर धर्म की विजय

मारुतिं नमत राक्षसान्तकम्’ से यह स्पष्ट होता है कि हनुमान जी राक्षसों का संहार करने वाले हैं, अर्थात् वे अधर्म, अज्ञान और अहंकार को समाप्त करने वाले हैं। जब कोई भी असत्य या अधर्म श्रीराम भक्ति के मार्ग में बाधा डालता है, तो हनुमान जी उसे नष्ट कर देते हैं

हमारे जीवन में इस श्लोक का महत्व

  1. भगवान का सुमिरन करना – यह श्लोक हमें यह सिखाता है कि हम जहाँ भी भगवान का नाम लेंगे, वहाँ उनकी उपस्थिति अवश्य होगी
  2. श्रद्धा और भक्ति का भाव – भक्तों को हनुमान जी की तरह समर्पण और प्रेम से अपने आराध्य की आराधना करनी चाहिए
  3. संकटों का नाश – यह श्लोक हमें यह भी दर्शाता है कि जहाँ भक्ति होगी, वहाँ कोई भी संकट अधिक समय तक नहीं टिक सकता

श्लोक का पाठ करने के लाभ

हनुमान जी की कृपा प्राप्त होती है
संकट और कष्टों का नाश होता है
शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है
शारीरिक और मानसिक बल की प्राप्ति होती है
मन को शांति और अध्यात्मिक ऊर्जा मिलती है

हनुमान जी की भक्ति को कैसे अपनाएँ?

  1. नियमित रूप से हनुमान चालीसा और सुंदरकांड का पाठ करें
  2. हर मंगलवार और शनिवार हनुमान जी की पूजा करें
  3. राम नाम का सुमिरन करें और श्रीरामचरितमानस पढ़ें
  4. सेवा, समर्पण और विनम्रता का अभ्यास करें

प्रसिद्ध मंदिर जहाँ यह श्लोक गूंजता है

  1. हनुमान गढ़ी, अयोध्या – यहाँ भक्तों द्वारा हनुमान चालीसा और यह श्लोक गाया जाता है
  2. संकट मोचन मंदिर, वाराणसी – हर मंगलवार यहाँ श्रीराम भक्ति में यह श्लोक गाया जाता है
  3. महावीर हनुमान मंदिर, पटना – प्रसिद्ध मंदिर जहाँ हनुमान जी के भक्त राम कीर्तन में इस श्लोक का पाठ करते हैं
  4. बालाजी मंदिर, राजस्थान – यहाँ भक्तों द्वारा हनुमान जी की उपासना में इस श्लोक का उच्चारण किया जाता है

निष्कर्ष

यत्र यत्र रघुनाथ कीर्तनं’ श्लोक हमें सिखाता है कि जहाँ भक्ति होती है, वहाँ हनुमान जी की कृपा अवश्य होती है। यह हमें सच्ची भक्ति, सेवा और निस्वार्थ प्रेम का मार्ग दिखाता है। इस श्लोक को नियमित रूप से पढ़ने और इसका अर्थ समझने से जीवन में सकारात्मकता और आत्मबल बढ़ता है

अगर हम श्रद्धा और प्रेम से श्रीराम का कीर्तन करें, तो हनुमान जी हमें संकटों से मुक्ति और सफलता का आशीर्वाद प्रदान करेंगे।

🚩 जय बजरंग बली! जय श्रीराम! 🚩

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